मुंबई: मुंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से पूछा कि उसने और निचली अदालत ने उन कुछ दस्तावेजी सबूतों की फोटोकॉपी की प्रमाणिकता का सत्यापन (वैरिफिकेशन) कैसे किया, जिन्हें उसने 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में आधार बनाया है।
न्यायमूर्ति ए.एस. ओक और न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी की पीठ ने एनआईए को इस बारे में बुधवार तक जानकारी देने का निर्देश दिया। मामले के एक आरोपी समीर कुलकर्णी की दायर अपीलों पर सुनवाई के दौरान पीठ ने यह निर्देश दिया। दरअसल, कुलकर्णी ने विशेष एनआईए अदालत के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसके तहत जांच एजेंसी को गवाहों के रेकॉर्ड से गायब बयानों और आरोपियों के इकबालिया बयानों की फोटो कॉपी सौंपने की इजाजत दी गई थी।
जनवरी 2017 में विशेष एनआईए अदालत ने फोटोकॉपी के इस्तेमाल की इजाजत दी थी। जांच एजेंसी ने यह दलील दी थी कि गवाहों के मूल बयान और आरोपियों के इकबालिया बयानों वाली कुछ फाइलें गायब हैं तथा उनका पता नहीं लग पा रहा है। जांच एजेंसी ने दलील दी कि इन बयानों का पता नहीं चल पा रहा है और मामले की कार्यवाही नियमित रूप से चल रही है, इसलिए मूल बयानों की प्रतियों को रेकॉर्ड में लिया जाए। इस पर, निचली अदालत ने इस तरह की फोटोकॉपी का इस्तेमाल साक्ष्यों के रूप में करने की इजाजत दे दी।