मुंबई : मुंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) 2008 में हुए मालेगांव विस्फोट मामले में माध्यमिक सबूत के तौर पर गवाहों और आरोपियों के बयानों की फोटो कॉपी स्वीकार न करे।
न्यायाधीश एएस ओक और न्यायाधीश एएस गडकरी ने माना कि एनआईए द्वारा बयानों की फोटोकापी दी गई है। लेकिन कोर्ट ने कहा कि विशेष कोर्ट ने एनआईए से यह नहीं पूछा कि बयानों की फोटोकापी इसलिए दी गई है, क्योंकि मूल दस्तावेज हमेशा के लिए गायब हो गए हैं।
दोनों जज ने पूछा कि 'प्रश्न यह है कि किसने ये कापियां ली, क्या एनआईए ने पूछा कि किसने यह फोटो कॉपियां लीं, आपको क्या मालूम कि ये कॉपियां मूल दस्तावेजों की ही हैं। जब आपको इन कॉपियों की सत्यता का पता ही नहीं है, तो आपको इन्हें माध्यमिक सबूतों के तौर पर स्वीकार नहीं करना चाहिए।
कोर्ट इस बारे में विस्तृत सुनवाई 5 फरवरी को कर सकती है। गौरतलब है कि इस ब्लॉस्ट में 6 लोगों की मौत हो गई थी और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। यह विस्फोट मालेगांव में एक मस्जिद के पास हुआ था।