मुंबई : मुंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय को आरक्षण देने का जो निर्णय किया है वह राजनीतिक रुप से लिया गया है और यह सरकार का एक चुनावी हथकंडा है। उसका यह भी दावा है कि सरकार को यह निर्णय लेने की विधाई शक्ति नहीं है। न्यायाधीश रंजीत मोरे और न्यायाधीश भारती डांगरे ने बुधवार को इस मुद्दे पर दायर याचिकाओं की अंतिम सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। इन याचिकाओं में मराठा समुदाय को सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में 16 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है।
वकील जी सदावर्ते ने याचिकाकर्ता जयश्री पाटील की ओर से पेश होते हुए कहा कि सरकार का निर्णय केवल चुनावी लाभ पाने के लिए किया गया है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय कानून यह कहता है कि आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो सकता है, जबकि महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को शामिल करते हुए यह व्यवस्था 78 प्रतिशत हो गई है। सरकार केंद्रीय कानून से ज्यादा आरक्षण नहीं दे सकता।
उन्होंने यह भी कोर्ट को बताया कि महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने जो रिपोर्ट पेश की है उसमें मराठा समुदाय को एक जाति नहीं बताया है बल्कि कुन्बी जाति का हिस्सा बताया गया है। इसी रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने मराठा समुदाय को आरक्षण दिया है। अब इस मुद्दे पर गुरुवार को भी सुनवाई होगी।