मुंबई : शौक और
मजे के लिए
शुरू की गई
चीजों की आदत
नकारात्मक परिणाम देने लगती
है। इसी शौक
की सूची में
मोबाइल पर खेला
जानेवाला ऑनलाइन गेम पब्जी
की लत देश
के लाखों युवाओं
को लग चुकी
है। पब्जी का
नशा लोगों के
सिर पर इस
कदर चढ़कर बोल
रहा है कि
न तो उन्हें
अपने भविष्य की
चिंता है और
न ही रोजमर्रा
के कामों से
कोई लेना-देना
बच्चों और युवाओं
के इस पागलपन
से परेशान अभिभावकों
ने अब उनके
लिए मनोचिकित्सकों से
संपर्क करना शुरू
कर दिया है।
बता दें कि युवा पीढ़ी पर ऑनलाइन चैटिंग और गेमिंग का जुनून सवार है। इसमें पब्जी ने अधिकतर युवाओं को इस कदर पागल कर दिया है कि वे पढ़ाई-लिखाई छोड़कर दिन में १० से १२ घंटे लगातार ऑनलाइन गेम खेलने में बिता रहे हैं। हेल्थ स्प्रिंग क्लिनिक के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. सागर मूंदड़ा ने बताया कि प्रतिदिन कम से कम एक बच्चे के मोबाइल एडिक्शन से परेशान होकर अभिभावक उसे क्लिनिक लेकर आते हैं। जब बच्चे से बातचीत की जाती है तो ९० प्रतिशत मामलों में पब्जी के कारण बच्चों में पागलपन देखने को मिलता है। डॉ. मूंदड़ा ने बताया कि इसमें अधिकांश रूप से १० से २० तक की उम्र के मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं। पब्जी के एडिक्शन के कारण बच्चों में चिड़चिड़ापन अधिक देखने को मिल रहा है। इसके कारण बच्चों ने परिवारवालों से बातचीत करना और खाना-पीना कम कर दिया है। डॉ. मूंदड़ा ने बताया कि अभिभावकों का कहना है अगर बच्चों को मोबाइल नहीं दिया जाए तो वे आग-बबूला होकर मां-बाप से लड़ाई करने पर उतारू हो जाते हैं। डॉ. मूंदड़ा के अनुसार मोबाइल पर पब्जी खेलने की इस एडिक्शन का उपाय बच्चे की एडिक्शन के बारे में पता चलते ही उसे अस्पताल लेकर जाना चाहिए। थैरेपी और दवाइयों से इसका इलाज संभव है ऐसे में बच्चे को मोबाइल से दूर रखना चाहिए।