मुंबई : पुण्य कमाने की
लालच में लोग
कबूतरों को दाना
डालते हैं। कबूतरों
के लिए कुछ
लोग तो घर
की खिड़कियों में
भी दाना-पानी
का इंतजाम करके
रखते हैं लेकिन
लोग यह नहीं
जानते कि उनका
यह कबूतर प्रेम
उनके व उनके
परिजनों के लिए
जानलेवा सिद्ध हो सकता
है। कबूतरों की
वजह से होनेवाली
एक नई बीमारी
लोगों को अपने
चंगुल में तेजी
के साथ जकड़
रही है। यह
बीमारी फेफड़ों से जुड़ी
है और इसका
नाम इंटरस्टीशियल लंग्स
डिसीज (आईएलडी) है।
यह बीमारी कबूतरों के पंख व उनकी बीट की वजह से फैलती है। आईएलडी के इलाज को लेकर अभी तक न तो ज्यादा दवाएं ईजाद हुई हैं और न लाइन ऑफ ट्रीटमेंट है। जागरूकता की कमी के चलते न तो ज्यादा मरीज इस बीमारी को पहचान पाते हैं और न ही डॉक्टर्स इसे जान पाते हैं लेकिन कबूतरखाने या जिन इलाकों में कबूतरों की संख्या अधिक है वहां आसपास रहनेवाले लोगों में यह बीमारी तेजी से पांव पसार रही है। इसमें फेफड़ों में फाइब्रोसिस होती चली जाती है। इसमें लंग्स की फ्लैक्सिबिलिटी खत्म हो जाती है। यह सीओपीडी से भी खराब बीमारी है, जिसमें एंटीजिंस डेवलप हो जाते हैं। देश में इस बीमारी के उपचार को लेकर गाइड लाइन बनाने का काम अब शुरू हुआ है। डॉक्टरों का मानना है कि आईएलडी का पता एडवांस स्टेज में हो पाता है। वैसे आईएलडी का समय पर पता चले तो इसे कंट्रोल करने की संभावना है, लेकिन खत्म कभी नहीं होती।
पुरानी फिल्मों में तथा दंत कथाओं में कबूतर का उल्लेख एक अच्छे संदेश वाहक के रूप में मिलता है लेकिन आज यही कबूतर जानलेवा बीमारियों का वाहक बन गया है। कबूतर के कारण अस्थमा के मरीजों में परेशानी बढ़ने की शिकायतें पहले से ही सामने आती रही हैं लेकिन अब इंटरस्टीशियल लंग्स डिसीज (आईएलडी) नामक एक नई बीमारी सामने आई है, जो कि कबूतरों के पंख व उनकी बीट की वजह से पैâलती है। यह बीमारी अब तक लाइलाज है इसलिए कबूतर पालने की बजाय इसे जा जाष्ठ कहने का वक्त आ गया है।
गौरतलब है कि पहले गर्मियों में लोग पशु-पक्षियों के लिए अनाज-पानी व चारे का इंतजाम करते थे। लोगों की यह मान्यता है कि इससे पुण्य मिलेगा। मानवीय आधार पर यह ठीक भी है लेकिन बाद में लोगों में पुण्य कमाने की लालसा यानी अंध-विश्वास बढ़ता जा रहा है। नतीजतन, आज जगह-जगह कबूतरखाने खुलने लगे हैं। इसमें कुछ व्यापारियों की कुटिल नीति भी काफी हद तक जिम्मेदार है। व्यापारी अपनी दुकान के आस-पास कचरा अनाज फेंक देते हैं, उस अनाज को चुगने के लिए वहां कबूतर व दूसरे पक्षी आने लगते हैं। बाद में पुण्य कमाने की लालच में लोग अनाज डालने लगते हैं। इसमें ज्यादातर लोग आसपास की दुकानों से ही अनाज खरीदते हैं। हालांकि पुण्य कमाने का यह प्रयास सेहत के लिए बेहद नुकसानदेह है। इससे कबूतरों का प्रजनन चक्र गड़बड़ा रहा है। उनकी आबादी और गंदगी बढ़ रही है। एक शोध के अनुसार अगर एक कबूतर अच्छे से खाए तो सालभर में १२ किलो बीट देता है, जिसके सूखने के बाद उनमें परजीवी पनपने लगते हैं, जो हवा में घुल कर संक्रमण पैâलाते हैं। इससे सांस संबंधी हिस्टोप्लास्मोसिस व अस्थमा जैसे रोग हो सकते हैं। कई शोधों ने इस बात की पुष्टि भी की है कि कबूतरों के संपर्क में आने से लंग्स से संबंधित हाइपरसेंसटिविटी न्यूमोनाइटिस इंफेक्शन होने का खतरा रहता है। कबूतर की बीट के १०० मीटर के दायरे में गुजरने से भी इस बीमारी के चपेट में आ सकते हैं। इससे लोगों को एलर्जी की शिकायत भी हो जाती है। चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक डॉक्टर संदीप साल्वी के अनुसार कबूतर की बीट में ग्रेनोलोमा नामक पार्टिकल पाया जाता है, जो छोटे-छोटे कणों के रूप में लोगों के फेफड़े में पहुंच जाते हैं और वहां चिपक कर विपरीत परिणाम डालते हैं। इससे लोगों को सांस लेने में परेशानी होती है तथा लगातार खांसी आती है जिसका इलाज मुश्किल हो जाता है। इससे कुछ लोगों को एलर्जी की समस्या भी होती है। इसलिए अब पुण्य कमाने के अंध विश्वास को छोड़ कर ‘कबूतर जा जा ..’ कहने का वक्त आ गया है।