राज्य में मनुस्मृति का पाठ्यक्रम में शामिल होने नही देगा- छगन भुजबल
चतुर्वर्ण परंपरा हमें मान्य नहीं, महाराष्ट्र का जिन्होंने ने निर्माण किया उन महापुरुषों के बारे में बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए छगन भुजबल की मांग
आगामी विधानसभा चुनाव में एनसीपी को सम्मानजनक सीटें मिलनी चाहिए- छगन भुजबल
मुंबई। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी फुले शाहू आंबेडकर की विचारधारा वाली पार्टी है और राज्य सरकार में शामिल है. इसलिए प्रदेश में स्कूली शिक्षा में मनुस्मृति को शामिल करना कभी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. जब तक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सत्ता में है, मनुस्मृति को स्कूलों में पढ़ाने की अनुमति नहीं दी जाएगी. यह तीखी राय राज्य के मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने व्यक्त की. वह हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के मद्देनजर आयोजित एनसीपी पार्टी की समीक्षा बैठक में बोल रहे थे।
जिन महापुरुषों ने इस महाराष्ट्र का निर्माण किया, उनकी शिक्षा बच्चों को देना जरूरी है.उन्होंने राय व्यक्त की कि अन्नाभाऊ साठे की शिक्षा बच्चों को दी जानी चाहिए. इस मौके पर उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में 400 पार का नारा लगने के बाद विपक्ष ने प्रचार किया कि देशों का संविधान बदल दिया जाएगा और इस वजह से हमने देखा कि कई जगहों पर दलित वर्ग परेशान था. जहां ये चर्चा शांत नहीं होती वहां तुरंत मनुस्मृति की चर्चा शुरू हो गई है. इसलिए भविष्य में इसका असर हम पर भी पड़ सकता है, इसका विचार हमे करना जरूरी है।
इस दौरान उन्होंने कहा कि 2019 के लोकसभा चुनाव में चुनी गई सीटों के लिए हमारे लिए मापदंड तय किए गए थे. अब विधानसभा में लोकसभा की तरह सीट आवंटन का मामला नहीं होना चाहिए. इसके लिए छगन भुजबल ने मांग की कि उन्हें बीजेपी को याद दिलाना चाहिए कि उन्होंने 80-90 सीटें देने का वादा किया था. जब हम महायुती में आए तो बीजेपी ने अपनी बात रखी. विधानसभा में महायुती में उचित हिस्सेदारी मिलनी चाहिए.
हमें उन्हें बताना होगा कि हमें इतनी सीटें चाहिए.' यदि 80-90 सीटें मिलती हैं तो 50-60 चुन कर आएंगे. अब 50 हैं यानी हम 50 सीटें लेंगे ऐसा होगा नही. भुजबल ने मांग की कि अब हमें हमारा हिस्सा मिलना चाहिए ऐसा भुजबल ने अजित पवार से किया है।
उन्होंने आगे कहा कि राज्य में हाल ही में लोकसभा चुनाव हुए हैं और आने वाले वर्षों में विधान परिषद के शिक्षक और स्नातक निर्वाचन क्षेत्रों के लिए चुनाव होंगे. इसलिए हमें चुनाव आयोग को पहले ही लिख देना चाहिए ताकि इस दौरान जब एक बार फिर आचार संहिता की जरूरत पड़ेगी तो सभी विधायकों का उनके निर्वाचन क्षेत्रों में कामकाज बाधित न हो.